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डीएनए स्पेशल
What is Multi Model Transport Hub: देश की राजधानी दिल्ली को प्रदूषण और ट्रैफिक जाम की समस्या से उबारने के लिए अपनाया जा रहा है मल्टी मॉडल इंटीग्रेशन का मॉडल. इसमें बस, रेलवे, मेट्रो और रैपिड रेल एक ही जगह पर मिलेंगी. इसके अलावा, दो एक्सप्रेसवे भी यहीं से शुरू होंगे.
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डीएनए हिंदी: दिल्ली देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. दिल्ली के अलावा, हरियाणा के 14, उत्तर प्रदेश के 8 और राजस्थान के 2 जिलों को मिलाकर दिल्ली-एनसीआर बनता है. इस पूरे क्षेत्र की जनसंख्या लगभग 6 करोड़ से भी ज़्यादा है. दिल्ली में सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण की है और इस प्रदूषण में 45 से 55 प्रतिशत हिस्सेदारी गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की है. दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन से लगभग 40 प्रतिशत लोग ही सफर करते हैं, जबकि मुंबई में यही संख्या लगभग 80 प्रतिशत और कोलकाता में भी यह संख्या 80 प्रतिशत से ज्यादा है. इसका असर न सिर्फ लोगों की सेहत पर पड़ता है, बल्कि लोगों के पैसे ज्यादा खर्च होते हैं, ट्रैवलिंग में समय ज्यादा लगता है और सड़कों पर जाम लगा रहता है.
इन समस्याओं को लेकर किए जा रहे कई उपायों में मल्टी मॉडल ट्रांजिट हब (MMTH) एक है. मौजूदा समय में दिल्ली के आनंद विहार और सराय काले खां को इंटिग्रेटेड मॉडल के रूप में विकसित किया जा रहा है. इन जगहों पर रेल, बस, मेट्रो और रैपिड मेट्रो एक साथ मिलेंगी. नए डिजाइन के मुताबिक, इन सबको एक साथ जोड़ा जाएगा ताकि आम जनता का समय बचे और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिल सके. साथ ही, यहां से सिटी बस भी चलेंगी.
मल्टी मॉडल इंटीग्रेशन के बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट में डेप्युटी डायरेक्टर के पद पर तैनात विवेक चटोपाध्याय का मानना है कि इससे सबसे बड़ी दिक्कत यह दूर होगी कि लोगों को एक ट्रांसपोर्ट से उतरने के बाद अपने घर या दफ्तर तक पहुंचने में आसानी होगी. ऐसा होने की मुख्य वजह यह है कि दिल्ली के ज्यादातर इलाके मेट्रो या बस रूट से जुड़े हुए हैं.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का कम होता इस्तेमाल है बड़ी चिंता
सार्वजनिक परिवहन के भरपूर इस्तेमाल के बावजूद दिल्ली में ट्रैफिक का दबाव और इससे होने वाला प्रदूषण काफी ज्यादा है. सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) के आकलन के मुताबिक, दिल्ली के प्रदूषण में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के प्रदूषण की हिस्सेदारी 45 से 55 प्रतिशत होती है. समस्या यह है कि भारत में लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या लोग ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं. CSE का मानना है कि आने वाले समय में यह हिस्सेदारी कम होने वाली है. CSE की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2000-2001 तक भारत में आवागमन करने वाले लगभग 75 प्रतिशत लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर रहे थे और साल 2030 तक यह कम होकर 40 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.
CSE के विवेक चटोपाध्याय कहते हैं कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि भविष्य में बनने वाले शहरों को लेकर भी इसकी योजना पहले से बनाई जाए. साथ ही, मौजूदा समय में परिवहन के सभी मोड पर काम किया जाए. उनका कहना है कि इस दिशा में सबसे अहम काम दिल्ली परिवहन निगम को करने की जरूरत है. दिल्ली की बात करें तो 2000 से 2009 के बीच कारों की संख्या में हर साल 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि बसों की संख्या में सिर्फ 1 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हुई.
दिल्ली के इकोनोमिक सर्वे के मुताबिक, मौजूदा समय में 36 प्रतिशत लोग कार से, 32 प्रतिशत लोग रेलवे से, सिर्फ 5 प्रतिशत लोग बस से और बाकी के 27 प्रतिशत लोग दोपहिया वाहनों से यात्रा करते हैं. RRTS चालू होने के बाद सिर्फ RRTS की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद जताई गई है जिसके चलते कार की संख्या घटकर 22 प्रतिशत , दोपहिया की संख्या 15 प्रतिशत और रेलवे से चलने वालों की संख्या 15 प्रतिशत और बस से चलने वालों की संख्या 2 प्रतिशत पर आ जाएगी. मौजूदा समय में दिल्ली-मेरठ, दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत के कुल 3 RRTS को मंजूरी मिली है जिसमें से दिल्ली-मेरठ रूट का काम 2025 तक पूरा हो जाएगा.
बस परिवहन हो रहा फेल?
दिल्ली में डीटीसी बसों की संख्या में कमी आना और इसका खस्ता हाल लोगों के लिए समस्या बन गई है. दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में डीटीसी की बसों की संख्या में कमी हुई है, 2017-18 की तुलना में बस से चलने वाले यात्रियों की संख्या आधी हो गई और बसों के खराब होने की जो संख्या 2017-18 में 780 थी, वह 2020-21 में बढ़कर 807 हो गई है. वहीं, क्लस्टर बसों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है कि 2017-18 की 1744 बसों की तुलना में 2021-22 में क्लस्टर बसों की संख्या 3310 हो गई है. हालांकि, बसों में चलने वाले यात्रियों की संख्या में कमी आने की बड़ी संख्या कोविड महामारी भी रहा है जिसके चलते बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान दिया जा रहा था.
रैपिड रेल से क्या है उम्मीद?
मौजूदा समय में दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल का काम तेजी से चल रहा है. साहिबाबाद से दुहाई डिपो सेक्शन पर ट्रेनों का ट्रायल भी शुरु हो गया है और कुछ ही महीनों में इसे चालू भी किया जा सकता है. 2025 तक इसे पूरी तरह से तैयार कर लिया जाएगा. NCRTC के एमडी विनय कुमार सिंह अपने कई बयानों में कह चुके है कि RRTS की मदद से हर दिन लगभग 8 लाख यात्री सफर करेंगे. उनका यह भी कहना है कि RRTS रूट पूरी तरह से चालू हो जाने के बाद हर साल 2.5 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम होगा.
मेरठ सिटी में रहने वाले आयुष बताते हैं कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे चालू होने से पहले बस या ट्रेन से ही लोग दिल्ली आते थे. दिल्ली में काम करने वाले ज्यादातर लोग ट्रेनों से और कुछ लोग बस से भी आते थे. मेरठ से दिल्ली के लिए बस पकड़ने का मतलब था कि 3 से 4 घंटे लगना. औसतन 2 घंटे तब भी लगते थे जब जाम कम हो. NCRTC का कहना है कि मेरठ से निजामुद्दीन की रैपिड रेल चालू होने के बाद यह सफर सिर्फ 55 मिनट का हो जाएगा.
क्यों अहम होने वाले हैं आनंद विहार और सराय काले खां?
डीएमआरसी के एक अधिकारी ने डीएनए हिंदी को बताया कि आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर हर दिन लगभग 58 हजार और सराय काले खां मेट्रो पर लगभग 28 से 30 हजार लोग आते हैं. इसी तरह, हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर हर दिन लगभग 50 से 60 हजार और सराय काले खां बस अड्डे पर 40 से 50 हजार लोग आते हैं. मौजूदा समय में से सब अलग-अलग हैं.
आनंद विहार में रेलवे स्टेशन पर हर दिन औसतन 60 से 70 हजार लोग आते हैं और त्योहारों के समय यह संख्या बढ़कर एक लाख हो जाती है. इसके अलावा, आनंद विहार ISBT और गाजीपुर बस अड्डे (यूपी रोडवेज) पर भी लगभग एक लाख लोग हर दिन आते हैं. इतनी बड़ी संख्या को संभालने के लिए NCRTC ने अलग से प्लान बनाया है.
NCRTC के आधिकारिक प्रवक्ता ने डीएनए हिंदी को बताया कि सराय काले खां और आनंद विहार पर RRTS स्टेशनों को बाकी के सभी ट्रांसपोर्ट मोड से जोड़ा जाएगा. इसके लिए, सराय काले खां पर कुल 6 गेट बनाए जाएंगे. एक गेट सराय काले खां ISBT के पास, एक मेट्रो स्टेशन के पास और एक हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास होगा. आमतौर पर 500 मीटर की दूरी होने पर ही ट्रैवलेटर लगाए जाते हैं लेकिन निजामुद्दीन स्टेशन और सराय काले खां RRTS के बीच 280 मीटर के लिए भी ट्रैवलेटर लगाया जाएगा ताकि लोग आसानी से पहुंच सकें.
अच्छी सड़क के बावजूद दूर नहीं हो रही समस्या
मयंक नेहरू प्लेस में नौकरी करते हैं. मेरठ में अपने घर से आने के लिए वह दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का इस्तेमाल करते हैं. अच्छी सड़क होने के बावजूद एक-तरफ का उनका सफर लगभग 2 घंटे का हो जाता है. यही वजह है कि उन्होंने दिल्ली में एक किराए का घर भी लिया है. मयंक का कहना है कि उनकी सैलरी ठीक-ठाक है वरना वह महीने में एक बार ही मेरठ जा पाते.
उनका कहना है कि अगर रैपिड मेट्रो उन्हें एक घंटे में ही दिल्ली से मेरठ पहुंचा देगी और इसका किराया भी सस्ता हुआ तो काम काफी आसान हो जाएगा. मयंक ने डीएनए हिंदी से कहा, ‘अगर NCRTC के दावे सही होते हैं तो मैं किराए का कमरा छोड़कर हर दिन आने-जाने के लिए तैयार हूं. फिलहाल मैं कार से आ तो सकता हूं लेकिन दिन में 4 घंटे कार चलाना आपको थका देता है.’
CSE के विवेक इस मुद्दे पर कहते हैं कि इंटीग्रेटेड मॉडल तभी सफल होगा जब डीटीसी, मेट्रो और रेलवे को भी उसी अनुपात में मजबूत किया जाए. इसका उदाहरण, मुंबई की लोकल है. जहां किसी भी जगह जाने के लिए आप लोकल पकड़िए लेकिन आप लेट नहीं हो सकते. अगर ऐसा कुछ ही दिल्ली में डीटीसी, मेट्रो और अन्य ट्रांसपोर्ट सिस्टम कर पाएं तो दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ाई जा सकती है जो कि अभी बड़े शहरों की तुलना में लगभग आधी है.
विवेक चटोपाध्याय का मानना है कि MMTH के सफल होने के लिए सबसे ज़रूरी है कि इसमें जितने भी हिस्सेदार हैं वे अपनी भूमिका समझें और उसे अच्छे से निभाएं. साथ ही, लास्ट माइल कनेक्टिविटी को मजबूत किया जाए, अक्सर इसी की प्लानिंग छूट जाती है और साधन मौजूद होने के बावजूद लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर शिफ्ट नहीं होते हैं. इसके लिए नए इलाके को विकसित करने से पहले उसकी कनेक्टिविटी के लिए पहले से योजना बनाई जाए. ट्रांसपोर्ट विभाग इस बात पर भी ध्यान दे कि जितना निवेश किया जा रहा है लोग उसका इस्तेमाल करें और राइडरशिप भी बढ़ाए जाए क्योंकि बस से चलने का खर्च, मोटर साइकल से चलने के खर्च के बराबर ही होता है.
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