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डीएनए एक्सप्लेनर
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्र कहते हैं कि AFSPA, सुरक्षाबलों को असीमित ताकत देता है, यह इसकी संवैधानिक कमी भी है. इनके गलत इस्तेमाल के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता है.
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डीएनए हिंदी: मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी जातीय हिंसा थमी नहीं है. हिंसा की वीभत्स खबरें सामने आ रही हैं. मणिपुर के कई हिस्सों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर्स एक्ट (AFSPA) बीते मार्च में ही हटाया गया था. सुरक्षाबलों को स्पष्ट निर्देश है कि वे नागरिकों के खिलाफ कोई कठोर एक्शन न लें. अब कानून के जानकार भी कहने लगे हैं कि राज्य में बिना कठोर AFSA के शांति बहाली की उम्मीद बेमानी है. मणिपुर पुलिस पर वैसे भी पक्षपात के आरोप लग रहे हैं, ऐसे में लोग उम्मीद जता रहे हैं कि बिना केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के, राज्य में जारी हिंसा का थमना मुश्किल है.
सेना से जुड़े हुए सूत्रों का कहना है कि AFSPA की ओर से सुरक्षाबलों को मिले विशेषाधिकारों के बिना वे मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में काम नहीं कर सकते हैं. उन्हें कई स्तर पर कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. मणिपुर से ऐसी कई खबरें सामने आई हैं जिनमें दावा किया गया है कि सुरक्षाबलों से हथियार छीन लिए गए हैं. बस सेना के साथ इस तरह की घटनाएं नहीं हुई हैं. अगर AFSA के तहत एक बार फिर सुरक्षाबलों को अधिकार मिले तो हो सकता है कि मणिपुर में जितने उग्रवादी ग्रुप हाल के दिनों में उभरे हैं उन पर एक्शन लिया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) विशाल अरुण मिश्र का कहना है कि AFSPA के बिना मणिपुर जैसे राज्य में सेना की व्यापक तैनाती, उनके लिए खतरा है. जगह-जगह जनजातियों के उग्रवादी ग्रुप बन गए हैं. उनसे निपटना सेना और असम राइफल्स के जवानों के लिए बिना हथियारों के मुश्किल है. हथियारबंद भीड़ से बिना किसी विशेषाधिकार के निपट पाना, आसान नहीं है. संवैधानिक और मानवाधिकार कानूनों से जुड़े खतरों के बावजूद भी मणिपुर में AFSPA की जरूरत राज्य में है.
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मणिपुर के कई हिस्सों से हटाया गया है AFSPA
मणिपुर में कई हिस्सों में इस कानून को हटा लिया गया है. अशांत क्षेत्र से शांत क्षेत्र में बदले ये इलाके, अब उग्र हैं. उग्र भीड़ से निपटने के लिए जो कानून, सुरक्षाबलों के लिए कवर हो सकते थे, उन्हें ही हटा दिया गया है. चुनौतियों के बाद भी सेना की त्वरित और सक्रिय कार्रवाइयों ने राज्य में अब तक बिना किसी नुकसान के कई लोगों की जान बचाई है.
मार्च 2023 में ही केंद्र सरकार ने असम के एक जिले और मणिपुर के चार पुलिस स्टेशनों से AFSPA हटा दिया गया है. वांगोई, लीमाखोंग, नंबोल और मोइरांग में अब AFSPA नहीं लागू है. मणिपुर के सात जिलों में एएफएसपीए के बिना करीब 19 पुलिस स्टेशन काम कर रहे हैं.
गृह मंत्री अमित शाह ने 25 मार्च को कहा था कि केंद्र ने पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार की वजह से नागालैंड, असम और मणिपुर में AFSPA के तहत अशांत क्षेत्रों को कम करने का फैसला किया है.
मणिपुर में बने हैं बफर जोन, सेना की जान पर जोखिम
मैतेई और कुकी समुदायों के बाहुल वाले इलाकों में बफर जोन बनाए गए हैं. प्रमुख जगहों पर गश्ती की जा रही है. कई जगहों पर सुरक्षाबल गश्ती तक नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें स्थिर चौकियों पर बिठा दिया गया है.ड्रोन के जरिए लोगों पर निगाह रखी जा रही है.
पुलिस स्टेशनों से लूट लिए गए हैं हथियार
मणिपुर में कई जगह से ऐसी खबरें सामने आई हैं कि पुलिस स्टेशनों से ही गोला-बारूद और हथियार को उग्र भीड़ ने लूट लिया है. कुछ हथियार तस्करी के जरिए भी मणिपुर में पहुंचे हैं. कई जगहों पर सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SOO) लागू है, जिसकी वजह से परेशानियां और बढ़ गई हैं.
क्यों मणिपुर के लिए AFSPA की वकालत कर रहे हैं कानून के जानकार?
सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता हर्षिता निगम ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि मणिपुर के उग्रवादी गुटों के पास लाइट मशीन गन, एके -47, इंसास राइफल, 7.62 मिमी सेल्फ-लोडिंग राइफल, रॉकेट लॉन्चर और 51 मिमी मोर्टार तक शामिल हैं. ऐसी स्थिति में अगर सुरक्षाबलों के पास एक्शन लेने के अधिकार नहीं होंगे तो जाहिर सी बात है कि वे अपनी जान जोखिम में डालकर मूकदर्शक ही बने रहेंगे.
अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्र ने कहा, 'मणिपुर में AFSPA कानून, आज की जरूरत है. इस कानून का दुरुपयोग होगा इसकी आशंका में इसे लागू न करना, जनता को जोखिम में डालना है. ऐसी स्थितियों में केंद्र सरकार को इस कानून को पूरे राज्य में लागू करना चाहिए, जिससे हालात काबू में आएं. विद्रोही गुटों को जब तक दबाया नहीं जाएगा तब तक मैतेई और कुकी समुदायों के हिंसक लोग, एक-दूसरे को मारने पर तुले रहेंगे.'
क्यों पड़ी थी AFSPA की जरूरत?
पूर्वोत्तर के घटनाक्रमों पर नजर रखने वाली एडवोकेट हर्षिता निगम कहती हैं कि पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवाद एक बड़ी समस्या थी. पूर्वोत्तर के राज्यों में आजादी के बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए थे. 11 सितंबर 1958 को आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट पारित किया गया था. अशांत क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आफस्पा कानून लागू किया जा सकता है. डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट के तहत AFSPA लागू किया जाता है. मौजूदा हालात कह रहे हैं कि मणिपुर में यह कानून लागू होना चाहिए.
कैसे AFSPA से आ सकती है मणिपुर में शांति?
एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि अशांत क्षेत्रों में इस एक्ट के जरिए कुछ सुरक्षाबलों को विशेषाधिकार मिलते हैं. सुरक्षाबल बिना किसी वारंट के किसी की भी जांच कर सकते हैं. उन्हें यह अधिकार मिलता है कि वे किसी की भी ठिकाने की तलाशी ले सकते हैं. उनके पास संदिग्ध ठिकानों को नष्ट करने के भी अधिकार होते हैं.
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एडवोकेट आनंद मिश्र कहते हैं कि AFSPA, विशेष परिस्थितियों के लिए ही बनाया गया था, ऐसे में इसकी जरूरत भी विशेष परिस्थिति में ही पड़ती है. मणिपुर के मौजूदा हालात बता रहे हैं कि तत्काल, सभी जिलों में इसे लागू करने की जरूरत है. अलग-अलग विद्रोही गुटों के हाथों में हथियार पहुंच गए हैं. उन्होंने अलग-अलग संवेदनशील जगहों पर अपने ठिकाने भी बना लिए हैं. ऐसे में अगर AFSPA बहाल की जाती है तो वहां विद्रोही गुटों पर नकेल लगाई जा सकती है.
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