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डीएनए एक्सप्लेनर
Bihar Politics: राजनीति टाइमिंग का खेल है. सही समय पर सही कदम उठाना ही राजनीति है. सही समय पर पाला बदलना, पुराने गिले-शिकवे भूलना, नए दोस्त बनाना ये सब कुछ राजनीति का हिस्सा है.
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डीएनए हिंदी: देश में इस समय बिहार की राजनीतिक चर्चा में है. सरकार बदल चुकी है, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं. जिन लोगों के साथ नीतीश कुमार ने करीब 2 वर्ष तक सरकार चलाई, अब उनकी मुसीबतें बढ़ गई हैं. आज यानी 29 जनवरी को RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव से ED ने पूछताछ की. इस पूछताछ को लेकर पूरे यादव परिवार और आरजेडी में खलबली मची हुई है. आरजेडी इसका ठीकरा नीतीश कुमार पर फोड़ रही है. आरजेडी को लगता है कि बीजेपी के साथ सरकार बनाते ही नीतीश कुमार ने अपना रंग दिया है. अब सवाल यह है कि कम सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार हर बार मुख्यमंत्री कैसे बन जाते हैं? आज हम नीतीश कुमार के इस सीक्रेट से पर्दा उठाएंगे.
बिहार की राजनीति कब किस तरफ करवंट बदलती है किसी को नहीं पता होता. अभी शनिवार को नीतीश कुमार ने महागठबंधन का हाथ छोड़ दिया. अपने पुराने साथियों राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस को अलविदा कहकर सरकार गिरा दी. उसके बाद अगले दिन रविवार को अपने पुराने दोस्तों से मिलकर दोबारा सरकार बना ली. बीजेपी के समर्थन से नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं. नीतीश कुमार के दोबारा सीएम बनते ही अगले ही दिन उनके पुराने सहयोगियों पर ED की कार्रवाई शुरु हो गई.
राजनीति टाइमिंग का खेल है. सही समय पर सही कदम उठाना ही राजनीति है. सही समय पर पाला बदलना, पुराने गिले शिकवे भूलना, नए दोस्त बनाना, दुश्मनी भुलाना, दुश्मनों को गले लगाना ये सब कुछ राजनीति में चलता है. 2020 चुनाव में जिन दोस्तों यानी NDA के साथ नीतीश कुमार ने सरकार बनाई थी. उन्हें 2022 में छोड़कर अपने राजनीतिक दुश्मनों से दोस्ती करने में नीतीश ने देरी नहीं की. अब जिस साल चुनाव होने है, उसी साल दोबारा से RJD-कांग्रेस को छोड़कर नीतीश कुमार ने बीजेपी से दोस्ती कर ली है. मौका देखकर रास्ते बदलना राजनीति का सबसे बड़ा दांव है. यही बात RJD-कांग्रेस और INDI गठबंधन को खटक रही है.
अब सवाल ये है कि नीतीश कुमार में ऐसा क्या है कि वो बिहार में कम सीटें जीतने के बावजूद हर बड़ी पार्टी उन पर दांव लगाती है और उन्हें मुख्यमंत्री बना देती है. बिहार में 2020 विधानसभा चुनाव में JDU को 243 में केवल 43 सीटें मिली थीं. उन्हें बिहार में करीब 15.7 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. जबकि JDU की सहयोगी पार्टी बीजेपी को 19.8 प्रतिशत वोट मिला था और 74 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ये साफ है कि इस चुनाव में BJP दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन बीजेपी ने JDU के नीतीश कुमार को सीएम पद के लिए आगे कर दिया था. हालांकि दो साल बाद यानी वर्ष 2022 में नीतीश कुमार ने BJP से मिले गिफ्ट के बदले रिटर्न गिफ्ट दिया. नीतीश कुमार ने NDA का साथ छोड़ दिया और RJD-कांग्रेस के साथ सरकार बना ली.
इसी तरह से 2015 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में भी RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. लेकिन इसके बावजूद बिहार के सीएम पद के लिए नीतीश कुमार का नाम आ गया था. 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 17.3 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 71 सीटें मिली थीं. जबकि RJD को 18.8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 80 सीटों पर जीत दर्ज हुई. RJD अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद कम सीटों वाली JDU के नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने दिया. लेकिन नीतीश कुमार ने लालू की इस राजनीतिक दरियादिली का सिला वर्ष 2017 में दिया. नीतीश ने महागठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ हो लिए थे.
90 के दशक में हुए थे कई बदलाव
देखा जाए तो पिछले करीब 9-10 साल में कम सीटों वाली पार्टी होने के बावजूद बिहार के सीएम पद पर नीतीश कुमार ही दिखाई देते रहे हैं. आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों है. तो इसकी वजह समझने के लिए बिहार के राजनीतिक इतिहास में पीछे जाना पड़ेगा. 90 के दशक में हुए मंडल कमीशन से उपजे विवाद के दौर में देश की राजनीति में कई बड़े बदलाव हुए थे. इसमें सबसे बड़ा बदलाव यूपी और बिहार की राजनीति में हुआ था.
वर्ष 1990 से वर्ष 2005 तक बिहार में लालू प्रसाद यादव का एकछत्र राज था. उस दौर में लालू प्रसाद यादव के M-Y यानी मुस्लिम-यादव समीकरण को तोड़ना किसी भी राजनीतिक दल के बस में नहीं था. पूरे देश में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल पर जंगलराज का आरोप लगता रहा. ये वो दौर था जब पूरा बिहार जातिगत हिंसा में डूबा हुआ था. बिहार में अपराध अपने चरम पर था. अलग-अलग जातियों ने अपनी अलग-अलग सेनाएं तक बनाई थीं. लालू प्रसाद यादव के इस कार्यकाल में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. लेकिन सीएम पद पर ना रहते हुए भी लालू सीएम वाला काम करते रहे, उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बनाकर सरकार चलाई.
सुशासन बाबू के तौर पर बनाई छवी
ऐसे दौर में नीतीश कुमार ने लालू यादव का साथ छोड़ दिया और RJD से जुड़े हुए पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को भी अपने पक्ष में कर लिया. वर्ष 2005 के चुनाव में JDU 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इस सरकार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे. नीतीश कुमार ने BJP की अगुवाई वाली NDA के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. हालांकि, इस चुनाव में भी वोट प्रतिशत के हिसाब से RJD ही सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.
वर्ष 2005 से 2010 तक के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने बिहार की कानून व्यवस्था में कई बड़े सुधार किए. बिहार में होने वाली जातीय संघर्ष पर काफी हद तक रोक लगाई. बिहार के सिस्टम में जो भ्रष्टाचार था, नीतीश ने उसको भी कम किया. यही नहीं नीतीश कुमार ने अपने शासन में लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया. अपने इस तरह के कामों से नीतीश ने अपनी छवि 'सुशासन बाबू' के तौर बनाई थी. बिहार के लोग भी लालू यादव के जंगलराज वाले शासनकाल से परेशान थे. ऐसे में नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने अपना समर्थन दिया.
नीतीश की साख हो रही कम
साल 2010 में नीतीश कुमार को कार्यकाल में किए गए अच्छे कामों का फायदा मिला. उनका पार्टी वोट प्रतिशत और सीटों के लिहाज से बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. उस साल JDU ने 243 में से 115 सीटें जीती थीं, जबकि उनकी सहयोगी बीजेपी को इस चुनाव में 91 सीटें मिली थीं. RJD को इस चुनाव में मात्र 22 सीटें मिली थीं. अपने इस कार्यकाल में किए गए काम और उन कामों से बनी सुशासन बाबू वाली छवि का फायदा नीतीश कुमार को आज भी हो रहा है. यही वजह है कि सीटें कम मिलने के बावजदू, ज्यादा सीटों वाली पार्टियां उन्हें सीएम के तौर पर स्वीकार कर लेती हैं. लेकिन नीतीश कुमार को अपनी छवि का जो लाभ हुआ वो बहुत लंबे समय तक नहीं टिका रहेगा. वजह ये है कि 2010 में ही नीतीश कुमार की पार्टी अपने चरम पर आ गई थी. देखा जाए तो धीरे- धीरे अगले जितने भी चुनाव आए हैं, उनके नतीजों से पता चलता है कि नीतीश कुमार की साख बिहार में कम होती जा रही है.
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